Anant Chaturdashi 2023 : अनंत चतुर्दशी भाद्रमास मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवन विष्णु के अनंत रूप की पूजा करके मनाई जाती है। अनंत चतुर्दशी पर व्रत रखकर भगवान बिष्णु की पूजा करने से रुके हुए काम निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं। अनंत व्रत के दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र (धागा) बांधा जाता है। ये सूत्र (धागा) कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं। इस बार अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर, गुरुवार को है। इस दिन भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा सुख सौभाग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए की जाती हैं।

अनंत व्रत का विधान :
- व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहन ले।
- इसके बाद एक धागे (सूत्र) को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर चौदह गांठें लगाकर अनंत सूत्र बनाये।
- अनंत सूत्र (धागे) को अनंत भगवान की तस्वीर के सामने रखें।
- अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की विधिपूर्वक पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें। ध्यान रहे, की पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे।
- मन्त्र:
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।। - तत्पश्चात् ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और भगवान का प्रसाद समस्त बंधु बांधव तथा कथा श्रवण करने वालों को दे
- उसके उपरांत स्वयं प्रसाद ग्रहण करे और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
- अनंत व्रत के दिन रात्रि को जागरण करना सर्वश्रेष्ठ होता है ,
- इस प्रकार नियम पूर्वक व्रत तथा पूजा करने से सब प्रकार के सुख, आरोग्यता समृद्धि, यश, धन-धान्य, संतान, वैभव तथा विजय की प्राप्ति होती है और अंत में संयोज्य मोक्ष होती है।
व्रत पूजा की सामग्री :
1. कदली स्तम्भ 2. आम पत्ते 3. पांच पल्लव 4. कलश 5. यज्ञोपवीत 6. लाल वस्त्र 7. सफ़ेद वस्त्र 8. अक्षत 9. रोली 10. गुड़ 11. धुप 12. दीप 13. पुष्प 14. तुलसी 15. श्री फल 16. पान पत्ते 17. ऋतू फल 18. पुष्प माला 19. पंचामृत 20. प्रसाद 21. भगवान की मूर्ति 22. लौंग 23. इलाइची 24. दुर्बा 25. कर्पूर 26. केशर 27. द्रव्य दक्षिणा 28. व्रत पूजा की किताब .

अनंत व्रत कथा माहात्म्य :
Anant Chaturdashi 2023 : यह अनंत व्रत भादो मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस अति पुनीत व्रत कथा के अनुष्ठान ही से समस्त पापों का विनाश होता है और मनुष्य सुख तथा समृद्धि को प्राप्त होता है। इस परम पुनीत व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से करते हैं, व्रत के दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पहले नित्य कर्मों से निवृत हो स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहने, उत्तम हो, अगर रेशमी वस्त्र धारण करें। उसके बाद हाथ जोड़कर मन को अनंत भगवान अनंत के चरण कमल में लगावे और एकाग्रता होकर मन से व्रत का निश्चय करें। अगर पास में नदी, तालाब हो तो, मन से निश्चय करके समस्त सामग्री को लेकर जल के किनारे जावे, वहां जाकर स्थान को स्वच्छ बनाएं और वह कदली के खम्भ स्थापित करके बीच में बांस की टोकरी रखें। कुशा को लेकर उसके शेषनाग की प्रतिमा बनाये और उसको उसी टोकरी में स्थापित करें। पंचामृत से शेषनाग को स्नान करावे, फिर स्वच्छ जल से स्नान कर कर उनके शरीर को अच्छी तरह सुखा ले। कलश के समीप दीपक जलाकर रखें, चंदन, अगर, धूप आदि की गंध दे। रोली और चावल से पूजन करें और पुष्प माल चढ़ावे। विभिन्न नाम से भगवान शेष का आवाहन करें। अनंत भगवान को इस समस्त विश्व का उत्पत्ति कर्ता, पालन कर्त्ता और संहार कर्त्ता माने। अनंत भगवान का ध्यान करके एकाग्र चिंतन करें 108 नाम से उनका जाप करें। तत्पश्चात उनको नैवेद्य अर्पण करें। एक सेर चुण का एक ही मालपुआ बनावे और भगवान के सम्मुख रखें और उसके बाद उसमें से आधा ब्राह्मणों को भोजन में इस्तेमाल करे और बचा हुआ आधा स्वयं के लिए रखे । इसके बाद सूत को रोली, कुमकुम, केसर या हल्दी से रंग कर उसमें 14 गांठ लगाए। फिर उसे धागे को पुरुष अपनी दाहिनी भुजा पर तथा स्त्री बाई भुजा पर धारण करें। भुजा पर धारण करते समय मन ही मन अनंत भगवान का ध्यान करके प्रार्थना करें। और मन ही मन प्रार्थना करे : हे वासुदेव! हे अनंत देव! इस संसार रूपी सागर से आप ही मुझे तारे। इस प्रकार अनंत भगवान के उसे सूत्र को बांधकर भगवान को हृदय में धारण करें।
उसके बाद ब्राह्मण को मालपुआ के साथ भोजन कराये और उत्तम वस्त्र, दक्षिणा देकर प्रसन्न करें। संध्या से पहले ही व्रत कथा को श्रवण करें अथवा पढ़ कर सुनावे। भोजन के उपरांत भगवन की कथाओ का श्रवण करे और ब्रह्मचर्य का पालन करे।
इस प्रकार व्रत करने से अनंत भगवान निश्चित ही अति प्रसन्न होते हैं और उसे प्राणी को अथाह धन धान्य देते हैं उसको पुत्र और पुत्रों का अनंत सुख प्रदान करते हैं। इस प्रकार अनंत भगवान की कृपा को वर्णन करना अति दुर्लभ है।
अनंत चतुर्दशी कथा प्रारम्भ :
Anant Chaturdashi 2023 : अनंत व्रत कथा वर्णन करते हुए भगवान श्री सूतजी बोले : हे ऋषिमुनियों! किसी समय पुण्य सलीला भागीरथी के किनारे पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने जरासंध का वध करने के लिए राजसूय यज्ञ प्रारंभ किया। यज्ञ मंडप का निर्माण अद्भुत और विस्मित करने वाला था, पांडवो सहित श्री कृष्ण भगवान ने अथितियों को उस यज्ञशाला में ठहराया। यह यज्ञ शाला इंद्र भवन के समान सुशोभित हो रही थी। उसी समय वहां कौरव में ज्येष्ठ दुर्योधन भी आ गए और भ्रमित होकर जल वाले स्थान थल समझ कर जल मे गिर गया। यह देख द्रोपदी आदि रानियां हंसने लगी और “अंधे की संतान अंधी ” बोलकर उपहास किया। दुर्योधन चिढ़ कर हस्तिनापुर चला गया। घर पहुंच कर दुर्योधन ने युधिष्ठिर आदि पांचों पांडवों को जुए के लिए आमंत्रित किया और जुए में उसने पांडवों का सब कुछ जीत कर उन्हें वनवास दे दिया। वे लोग द्रौपदी सहित वनवासी बनकर वनों में निवास करने लगे. पांडवों का वनवास सुनकर कृष्ण भगवान अत्यंत दुखी हुए और भाइयों को देखने के वन में पहुंचे।
श्री सूतजी कहते हैं कि हे ऋषि मुनियों वनवास से दुःखी पांडवों ने जब अपने भ्राता श्री कृष्ण को आते देखा तो गदगद हो सब प्रणाम कर परस्पर मिलने लगे। युधिष्ठिर बोले हे केशव! मैं इस घोर दुख को भाइयों और द्रोपदी सहित प्राप्त हुआ हूं, क्या इस दुख से मैं छुटकारा पा सकता हूं? कोई उपाय बताये जिससे मैं अपना राज्य फिर से प्राप्त कर सकूं और इस संकट से निकलकर फिर से अपना राज्य धन प्राप्त कर सकूं। श्री कृष्ण जी बोले अनंत भगवान का व्रत व पूजन ऐसा है जिससे मनुष्य के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं. शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यह व्रत किया जाता है जिसके अनुष्ठान से ही अनेक कष्टों से मुक्ति हो जाती है। इस संदर्भ में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को कथा सुनाई :
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा : (Anant Chaturdashi Katha)
Anant Chaturdashi 2023 : सतयुग के मध्य में एक तपस्वी ब्राह्मण सुमंत था। उसका विवाह वशिष्ठ भृगु की कन्या से हुआ था, उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की ज्वर से मृत्यु हो गई। पत्नी के देहांत के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया, लेकिन वह बहुत कर्कशा स्त्री थी। कन्या को विवाह योग्य देख सुमंत ने सुशीला का विवाह, ऋषि कौंडिन्य के साथ कर दिया। विदाई में दहेज देने की बात पर कर्कशा ने जमाई को कुछ ईंटें-पत्थर इत्यादि के टुकड़े बांध कर दे दिए।
यह सब देख कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। रास्ते में ही रात होने लगी तो नदी किनारे विश्राम करने रुक गए और वही कौंडिन्य ऋषि नदी तट पर संध्या पूजा आदि करने लगे। नवविवाहित सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा कर रही थीं। सुशीला ने उनसे पूछ की वो किस देवता की पूजा कर रही है और उसकी महत्ता क्या है ? इस प्रकार पूछने पर उन स्त्रियों ने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने उसी स्थान पर उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला धागा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास विश्राम स्थल पर आ गई।
ऋषि कौंडिन्य ने सुशीला से धागे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। लेकिन ऋषि कौंडिन्य को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने सुशीला पर क्रोधित होकर डांट फटकार कर उस डोरे (धागे) को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणाम स्वरुप ऋषि कौंडिन्य की सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। उनके आश्रम से गौ धन की चोरी हो गई, बंधू बांधव भी दुश्मन बन गए। इस पर दुःखी होकर कौंडिन्य ऋषि ने अपनी पत्नी सुशीला से पूछा की यह अचानक ही ऐसी विपत्ति मुझ पर किस कारण आई है? किस पाप का फल मुझे मिल रहा है? क्या तुम मुझे बता सकती हो? तो सुशीला ने अत्यंत नम्रता से कहा की आपने अनंत धागा तोड़ कर जला दिया और अनंत भगवान की निंदा करने की बात बताई और समझाया की ये सब उसी कारण हो रहा है।
इस पर घोर पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत भगवन की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते रहे। उन्होंने वृक्षों, वन के पशुओ सब से ज्ञात किया पर सभी ने मना किया। थक हार कर ऋषि कौंडिन्य अचेत हो गिर पड़े। होश में आने पर वे फिर अनंत भगवान को ढूंढने निकल पड़े. अंतत उन्होंने निराश होकर जीवन त्यागने की सोची। तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुम्हारे पश्चाताप से मैं प्रसन्न हूँ। अब तुम वापस जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। और इस व्रत के करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने अनंत व्रत का विधीपूर्वक करना शुरू किया और अनंत कृपा से संपन्नता प्राप्त करी।
श्री कृष्ण बोले – इस प्रकार तुम चौदह वर्षो तक अनंत व्रत करो और कथा श्रवण करो। श्रीकृष्ण की आज्ञा से पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत प्रारम्भ किया जिसके प्रभाव से पांडव वापस अपना राज्य प्राप्त कर सिंहासन पर आसीन हुए।

शिव जी की आरती :
जय शिव ओंकारा हर शिव ओंकारा। प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्धङ्गी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे। प्रभु पंचानन राजे
हंसानन गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। प्रभु दस भुज अति सोहे
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। प्रभु रुण्डमाला धारी
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। प्रभु बाघम्बर अंगे
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । प्रभु चक्र त्रिशूल धर्ता
जगकर्ता दुःख हरता जग पालन कर्ता ॥ॐ जय शिव ओंकारा ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रभु जानत अविवेका
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। प्रभु जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
जय शिव ओंकारा, हर शिव ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
आरती जय जगदीश हरे !
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का,
स्वामी दुःख विनसे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी,
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, प्रभु बिन और न दूजा
आस करूँ मैं जिसकी ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता,
स्वामी तुम पालन-कर्ता ।
मैं मूरख खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश हरे…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय , तुमको मैं कुमति ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे,
स्वामी तुम रक्षक मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ,
द्वार पड़ा मैं तेरे ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी कष्ट हरो देवा ।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा-प्रेम बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
तन मन धन सब है तेरा, स्वामी सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥ ॐ जय जगदीश हरे…
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
इसके पश्चात् कीर्तन इत्यादि कर पूजा संपन्न कर भगवान को भोग लगावे। भगवान से प्रार्थना करे और मनोकामना मांगे।