GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI ? | गीता उपदेश : आत्मा, मन और बुद्धि में क्या फर्क है ?

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI : आत्मा के प्रसंग में एक बात जानना जरुरी है की क्या आत्मा, मन और बुद्धि से अलग है? या ये आत्मा ही की शक्तियों और योग्यताओं के नाम है ? गीता में ऐसे अनेक वाक्य है जिनसे ये विदित होता है की मन और बुद्धि आत्मा ही की शक्तियों की अभिव्यक्ति के नाम है। जैसे गीता में लिखा गया है की ‘आत्मा को आत्मा द्वारा जितना है’। अब यहाँ आत्मा के मतलब मन और बुद्धि द्वारा जितना है।  पहली बार आत्मा शब्द मन और दूसरी बार आत्मा शब्द बुद्धि के लिए प्रयुक्त हुआ है।  इसी तरह एक बार यह भी लिखा गया है की आत्मा को, आत्मा द्वारा नियंत्रित (Control) करना है। स्पष्ट है की मन को बुद्धि द्वारा अथवा विवेक द्वारा शांत करने की बात कही गई है।

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI
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वास्तव ‘ मन’ संकल्प, अनुभव करने अथवा इच्छा ही का दूसरा नाम है और ‘बुद्धि’ जानने, मानने और पहचानने, याद रखने अथवा निर्णय या निश्चय करने का पर्यायवाची है। गीता में भी मन को तथा बुद्धि को इन्ही अर्थो में प्रयोग किया गया है।

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI : अब यदि देखा जाए तो इच्छा, ज्ञान,और अनुभव तो आत्मा के ही लक्षण है।, आत्मा ही सुख और शांति के लिए अच्छा करती है और आत्मा ही को सुख और शांति का अनुभव होता है। इस प्रकार, जैसे परमात्मा में पूर्ण ज्ञान होने से उसे “ज्ञान का सागर” कहा गया है वैसे ही आत्मा भी ज्ञान धारण करती है और वह ज्ञान, समझ, अथवा सूझ ही ‘बुद्धि’ है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया की – हे वत्स , तू मन को मुझमे लगा , बुद्धि को मुझसे युक्त कर कर अथवा तू अपनी बुद्धि मुझे अर्पित कर।  निसंदेह, भगवान ने किसी प्रकृतिकृत मन को लगाने या बुद्धि को अर्पण करने के लिए नहीं कहा होगा बल्कि एक ईश्वरानुभूति की इच्छा करना , प्रभु के स्वरुप का ही संकल्प करना अथवा स्मरण करना और अपने जो भी मंतव्य है, उनके विषय में दुराग्रह ना करके ईश्वरीय मत पर ही चलना ही तो मन को प्रभु में लगाना है और बुद्धि को अर्पण करना है।

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI
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GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI : गीता में उपदेश दिया गया है की इन्द्रियों से परे मन है, मन से परे बुद्धि और उससे परे आत्मा है। पर समझने वाले समझते है की मन, बुद्धि, आत्मा अलग अलग है और एक दूसरे से अलग है। जबकि वास्तव में इसका भाव यह ही की इन्द्रियां मनुष्य के संकल्प के अधीन है और संकल्प का नियंत्रण वाला अथवा उसकी अच्छाई या बुराई का निर्णय करने वाला ‘विवेक अथवा ज्ञान ‘ है अर्थात मनुष्य की समझ (बुद्धि) है  जब मनुष्य ज्ञान द्वारा मन को परमात्मा यानी परम ब्रह्म परमेश्वर से जोड़ देता है तभी उसे आत्मा का भी अनुभव होता है।

आत्मा की अनुभूति के लिए निश्चित तौर पर पहले मनन यानी योग करना होता है अर्थात उसे ज्ञान के संकल्प करने होते है।  फिर, उसेक संकल्प की तीव्रता कम हो जाती है और उसकी बजाय वह ‘आत्मा-निश्चय-बुद्धि’ होता है। अर्थात सूक्ष्म भाव से आत्म स्मृति में टिकता है। या ऐसे समझ ले की मन से परे अथवा मन से सूक्ष्म बुद्धि है। वास्तव में अर्थ यह है की अनुभूति के संकल्पो से हट कर सूक्ष्म रूप से ईश्वरीय स्मृति में टिकना होता है, उसके बाद ही मनुष्य आत्मा की अनुभूति को प्राप्त कर लेता है।

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI : गीता में उपदेश है की मन प्रकृतिकृत है अथवा मन और बुद्धि भी क्षेत्र है अथवा यह भी एक प्रकार से इन्द्रिय है। गीता के उपरोक्त लिखे हुए श्लोक से ये विपरीत भाव लिए हुए है या इसका भाव यह है की आत्मा जब अव्यक्त ब्रह्मलोक से शरीर में आती है तभी उसमे संकल्प उठते है, तभी वह निर्णय करनी या स्मृति में प्रवृत होती है।  अतः आत्मा की अभिव्यक्ति के साधन होने के करना ही इन्हे आत्मा की इन्द्रिय भी कह दिया होगा, वरना ये उस अर्थ में तो इन्द्रिय है ही नहीं जिस अर्थ में कान, नाक आदि शरीर की इन्द्रियाँ है। आत्मा से अभिन्न, स्वयं आत्मा ही की योग्यतायें होने के कारण ही इनके लिए कई बार ‘आत्मा’ शब्द का प्रयोग हुआ है – ये ऊपर बताया गया है.

GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI BTAYE
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GEETA UPDESH AATMA MAN AUR BUDDHI KYA HAI : ‘ज्ञान ‘ को आत्मा का तीसरा नेत्र भी कहा गया है और वास्तव में ज्ञान ‘नेत्र’ की तरह कोई इन्द्रिय तो है ही नहीं परन्तु उसे चक्षु यानी नेत्र की उपमा दी गई है क्योकि ज्ञान द्वारा आत्मा को सत्यता का प्रत्यक्ष दर्शन होता है. इसी प्रकार ‘मन’ को यदि कोई ‘सूक्ष्म  इंद्रीय’ कह दे तो ये शब्द उपमा ही हुआ क्योंकि जैसे ‘इन्द्रियां’  अभिवयक्ति का या ‘ज्ञान ‘ का द्वार है , वैसे ही मन भी आत्मा की अभिव्यक्ति ही का साधन है, यह भी अध्ययन के लिए एक द्वार है।  परन्तु इसे आत्मा से अलग अलग मानना भूल करना है।  जब आत्मा ब्रह्मलोक से इस पृथ्वी में आती है तो प्रकृति के सम्पर्क में आने पर सबसे पहले उसमे अस्तित्व का भान होता है। प्रकृति से सबसे पहले ‘मैं हूँ ‘ की उत्पति हुई, जब मनुष्य को अपने अस्तित्व का भान हो तो वह अपने चारो और के वातावरण को समझता और पहचानता है। उसी के बारे में कहा गया की अंहकार से बुद्धि पैदा हुई।  चूँकि इस अवस्था में होने पर ही मनुष्य चेष्टा, इच्छा और पर्यटन करता है इसलिए ये कहा गया की बुद्धि के बाद मन की उत्पति हुई। यह कहने का एक अलग तरीका ही है की इच्छा, समझ तथा निज भान के नाम है।

 

निष्कर्ष: आत्मा एक चेतन सत्ता है। उदाहरण के तौर पर बिजली बल्ब में प्रयोग होने पर रोशनी, कारखाने की मशीनों के सञ्चालन में काम लेने पर शक्ति, यंत्रो में उपयोग होने पर गर्मी या ताप कहलाती है उसी प्रकार की अभिवयक्ति के कारण ही आत्मा अथवा चेतन शक्ति के अलग नाम – मन, बुद्धि चित्त और अंहकार है। जब हम इसे संकल्प के रूप में इस्तेमाल करते है तो ‘मन’, विवेक या निर्णय शक्ति में उपयोग करे तो ‘बुद्धि’ और स्वमान के रूप में व्यक्त करते है तो – अंहकार कहलाती है।  हम मन को परमपिता परमात्मा से योग युक्त करके, आत्मा की स्थिति में स्थित करे।

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