GULZAR LEGEND OF HINDI CINEMA | गुलज़ार साहब जिनके लिखे गीत गुलजार कर देते है

Gulzar legend of hindi cinema : गुलज़ार नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। हिंदी सिनेमा जगत के मशहूर गीतकार, लेखक, शायर गुलजार के कलम से लिखा एक एक शब्द उनके नाम को सही सिद्ध करता है, उनके लिखे गीत आज भी उतने ही शौक से गुनगुनाये और गाये जाते है जितने कभी उस पुराने वक्त में गाये गये थे, समय चक्र का उन पर कोई फर्क नहीं पडा। सच तो ये है की आज के वक्त में उनके गानों के प्रति जूनून ज्यादा ही हुआ है। फिर क्यों ना आज हम अपने इस लेख में दिल में उतर जाने वाले गुलजार के बारे में कुछ लिखे और जाने कौन थे गुलजार? कैसे फिल्मो में आये ? आइये जानते है viral news club के आज के इस लेख में गुलजार के बारे में : 

Gulzar legend of hindi cinema

Gulzar legend of hindi cinema

गुलजार की शुरूआती जिंदगी:

Gulzar legend of hindi cinema : गुलज़ार का असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है, उनका जन्म 18 अगस्त 1934 को आज के पाकिस्तान में पंजाब के दिना नामक गाँव में हुआ था। भारत पाक बंटवारे में इनका परिवार भारत में अमृतसर में आ गया। गुलजार साहब पढने के शौकीन थे इसलिए दिल्ली आकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने लग गये। पर दिल में तो मायानगरी के सपने थे इसलिए गुलजार मुम्बई आकर बस गये और फिल्मो में कोशिश करने लग गये। कहते है न मेहनत कभी बेकार नहीं जाती, काफी संघर्ष के बाद 1963 में उन्हें डायरेक्टर बिमल राय की फिल्म ‘बंदिनी’ में बतौर गीतकार मौका मिल ही गया। इस फिल्म में उनका लिखा एकमात्र गाना ‘मोरा गोरा अंग लाई ले’ उनके लिए शानदार साबित हुए और उन्हें लगातार काम मिलने लगे ।

लिखने का शौक बचपन से :

गुलज़ार साहब को लिखने का शौक बचपन से था जबकि उनके परिवार वाले उनके इस शौक के विरुद्ध थे। इस लिए जब गुलजार साहब को कुछ लिखने का मन होता तो वो घर से बाहर चले जाते। और किस्मत देखे उसी शौक ने उन्हें भरपूर नाम दिया।

निजी जिंदगी: (Gulzar personal life)

Gulzar legend of hindi cinema : गुलज़ार साहब की शादी ज्यादा दिन नहीं चली। उनकी शादी मशहूर एक्ट्रेस राखी से 1973 में हुई थी लेकिन ये शादी ज्यादा दिन नहीं चल पायी और बेटी के जन्म लेने के बाद दोनो अलग अलग रहने लगे थे लेकिन उन्होंने कभी तलाक नहीं लिया। गुलजार की एक बेटी हुई जिसका नाम मेघना गुलजार है और अभी फिल्म निर्देशक है।

कैसे पड़ा ‘गुलज़ार’ नाम:

जैसा हमने पहले बताया की गुलज़ार साहब का असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है। मायानगरी mumbai आने के बाद उन्होंने नाम बदल कर गुलज़ार दिनवी कर लिया। लेकिन गीतों को लिखना शुरू करते समय उन्होंने सिर्फ ‘गुलजार’ नाम ही रखा।

गुलजार को मिले पुरस्कार:

Gulzar legend of hindi cinema : गुलज़ार साहब को हिंदी सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले जिनमे से प्रमुख 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार , 2004 में पद्म भूषण पुरस्कार, 2008 में अकादमी पुरस्कार, 2010 में ग्रैमी अवार्ड,  2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला।

Gulzar legend of hindi cinema
गुलज़ार को मिले मुख्य पुरस्कार

गुलजार के गीत और फिल्मे :

Gulzar legend of hindi cinema : गुलज़ार साहब के लिखे गानों के बोल सीधे दिल में उतर जाते थे, उनकी कलम में वो जादू था की आलोचक भी उनकी तारीफ़ करते थे। सच है बनावटी इजहार ज्यादा नहीं चल पाता है , जैसे मतलब से किया प्यार लम्बा नहीं चलता लेकिन दिल और मन  से किया गया प्यार हमेशा कायम रहता है ! यही बात शब्दों की होती है जब दिल और अंतरात्मा से कुछ लिखा जाता है तो मान के चले हर कोई के दिल में उतर जाता है, यही बात गुलजार के गीतों में थी, जो लिखते थे वो आज भी दिल में उतर जाते है और उसे ही गुनगुनाने का दिल चाहता है.  उनके लिखे मशहूर गाने में कुछ ये है :

वो शाम कुछ अजीब थी : ख़ामोशी (1969)

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने : आनंद (1971)

कोई होता जिसको अपना – मेरे अपने (1971)

गुलजार के गीत और फिल्मे
गुलजार के प्रसिद्ध गीत और फिल्मे

न जिया लागे न : आनंद (1971)

ज़िंदगी कैसी है पहेली – आनंद (1971)

ओ माझी रे अपना किनारा – ख़ुशबू (1975)

इस मोड़ से जाते हैं : आंधी (1975)

दिल ढूंढता है : मौसम (1975)

तेरे बिना ज़िंदगी से कोई : आंधी (1975)

तुम आ गए हो नूर आ गया है : आंधी (1975)

दो दीवाने शहर में – घरोंदा (1977)

नाम गुम जाएगा – किनारा (1977)

हज़ार राहें मुड़ के देखीं – थोड़ी सी बेवफ़ाई (1978)

आपकी आँखों में कुछ – घर (1978)

आने वाला पल जाने वाला है : गोलमाल (1979)

हुज़ूर इस क़दर भी – मासूम (1983)

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी : मासूम(1983)

ऐ ज़िंदगी गले लगा ले – सदमा (1983)

रोज़ रोज़ आंखों तले : जीवा (1986)

मेरा कुछ सामान – इजाज़त (1987)

यारा सीली सीली : लेकिन (1990)

दिल हूम हूम करे – रुद्राली (1993)

चप्पा चप्पा चरखा चले : माचिस (1996)

ऐ अजनबी : दिल से (1998)

कजरा रे – बंटी और बबली (2005)

गुलज़ार साहब में सिर्फ लेखन का हुनर ही नहीं था बल्कि उन्होंने कई बेहतरीन फिल्मे भी डायरेक्टकी थी जिसमे से प्रमुख 1971 में ‘मेरे अपने’, 1972 में ‘परिचय’,  कोशिश,  1973 में अचानक, 1974 में खुशबू, 1975 में आँधी, 1976 में मौसम, 1977 में किनारा, 1978 में किताब, 1980 में अंगूर, 1981में नमकीन और मीरा, 1986 में इजाजत,  1990 में लेकिन, 1993 में लिबास, 1996 में माचिस, 1999 में ‘हु तू तू’  फ़िल्मों में से एक हैं।

निष्कर्ष :  तो आज हमने जाना हिंदी फिल्मो के एक सितारे ‘गुलजार’ के बारे में और उनके फिल्मो के सफ़र के बारे में की उन्होंने कैसे अपना फ़िल्मी सफ़र तय किया और फिल्मो से लोगो के दिल में उतरे और ऐसे उतरे की सदियों बाद भी सबके दिल में जिन्दा है. viral news club का सलाम है ऐसे गीतकार को!

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